aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گھرانے"
मिस सी. ग्रांट
अनुवादक
बाबू गोरुंद तामुल
इंगपेन एंड ग्रांट, लंदन
पर्काशक
ग्रैंड प्रेस, दिल्ली
टेड ग्रान्ट
लेखक
ए. जे. ग्रांट
1862 - 1948
उन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थेये अश्क कौन से ऊँचे घराने वाले थे
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठाआँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा
महमूद मुस्कुराया, “हाय इस ज़ूद-ए-पशेमाँ का पशेमाँ होना।” जमीला ने कहा, “ये ग़ालिब है?”...
इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थेये अश्क कौन से ऊँचे घराने वाले थे
رہیں شاد و آباد کل خیر خواہپھریں اس گھرانے کے دشمن تباہ
नए साल की आमद को लोग एक जश्न के तौर पर मनाते हैं। ये एक साल को अलविदा कह कर दूसरे साल को इस्तिक़बाल करने का मौक़ा होता है। ये ज़िंदगी के गुज़रने और फ़ना की तरफ़ बढ़ने के एहसास को भूल कर एक लमहाती सरशारी में महवे हो जाता है। नए साल की आमद से वाबस्ता और भी कई फ़िक्री और जज़्बाती रवय्ये हैं, हमारा ये इंतिख़ाब इन सब पर मुश्तमिल है।
तरग़ीबी या प्रेरक शायरी उन लम्हों में भी हमारे साथ होती है जब परछाईं भी दूर भागने लगती है। ऐसी मुश्किल घड़ियाँ ज़िन्दगी में कभी भी रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती हैं। हौसलों के चराग़ बुझने लगते हैं और उम्मीदों की लौ मद्धम पड़ जाती है। तरग़ीबी शायरी इन हालात में ढारस बंधाती और हिम्मत देती है।
तरग़ीबी या प्रेरक शायरी उन लम्हों में भी हमारे साथ होती है जब परछाईं भी दूर भागने लगती है। ऐसी मुश्किल घड़ियाँ ज़िन्दगी में कभी भी रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती हैं। हौसलों के चराग़ बुझने लगते हैं और उम्मीदों की लौ मद्धम पड़ जाती है। तरग़ीबी शायरी इन हालात में ढारस बंधाती और हिम्मत देती है। ये चंद अशआर आप भी देखिए।
घरानेگھرانے
families
Misali Gharane ki Saat Adaat
अननोन ऑथर
Tareekh-e-Europe
इतिहास
Aap Ki Chhokari
ग़ुलाम जीलानी
सामाजिक
ग्रहण
राजिंदर सिंह बेदी
पाठ्य पुस्तक
Grahan
अफ़साना
रूस: इंक़लाब से रद्द-ए-इंक़लाब तक
अनुवाद
Ghane Janglon Mein
हुसैनुल हक़
पानी में घिरा पानी
मंशा याद
Ghane Saye
असलम परवेज़
स्केच / ख़ाका
Girhan
असमा एजाज़
महिलाओं की रचनाएँ
Jannat Grahan
ख़ालिद हुसैन
कि़स्सा / दास्तान
Ab Rat Guzarne Wali Hai
आशा रानी लखोटिया
Ghane Jungalon Mein
रेहान अहमद अब्बासी
Surat Garan-e-Deccan
Gharonde Ret Ke
बेदार भोपाली
मिसाल के तौर पर पाँच सौ पचपन... चुनांचे मैंने डाक्टर के कहने के मुताबिक़ ये टिन उसी शाम ख़रीदा था। उसने डिब्बे की तरफ़ ग़ौर से देखा। फिर मेरी तरफ़ निगाहें उठाईं, कुछ कहना चाहा मगर ख़ामोश रहा। मैं हंस पड़ा, “आप ये न समझिएगा कि मैंने आपके कहने पर...
जोड़े की शान बढ़ गई महफ़िल महक उठीलेकिन ये फूल अपने घराने से कट गया
मैंने कहा, ‘‘मिर्ज़ा जहाँ तक मुझे मा’लूम है तुमने स्कूल और कॉलेज और घर पर दो तीन ज़बानें सीखी हैं और इसके अ’लावा तुम्हें कई ऐसे अल्फ़ाज़ भी आते हैं जो किसी स्कूल या कॉलेज या शरीफ़ घराने में नहीं बोले जाते। फिर भी इस वक़्त तुम्हारा कलाम ‘‘हूँ’’ से...
सेनडो का उससे दरअसल ये मतलब था कि बाबू गोपीनाथ को उससे अक़ीदत थी। यूं भी मुझे दौरान-ए-गुफ़्तुगू में मालूम हुआ कि लाहौर में उसका अक्सर वक़्त फ़क़ीरों और दरवेशों की सोहबत में कटता था। ये चीज़ मैंने खासतौर पर नोट की कि वो खोया खोया सा था, जैसे कुछ...
उसके मुक़ाबले में हामिदा बहुत सीधी साधी थी। उसके ख़द्द-ओ-ख़ाल भी पुरकशिश न थे। साजिदा बड़ी चंचल थी। दोनों जब कॉलेज में पढ़ती थीं तो साजिदा ड्रामों में हिस्सा लेती। उसकी आवाज़ भी अच्छी थी, सुर में गा सकती थी। हामिदा को कोई पूछता भी नहीं था। कॉलेज की तालीम...
اسدِ حق کے گھرانے کا یہ دستور نہیں میں نبی زادہ ہوں سبقت مجھے منظور نہیں
तमाम उम्र फ़राएज़ की आबरू रखनातुम एक ऐसे घराने की लाज हो जिस ने
रावलपिंडी स्टेशन पर उस लड़की ने खाना मंगवाया बड़े इत्मिनान से एक एक निवाला उठा कर अपने मुँह में डालती रही। जावेद दूर खड़ा ये सब कुछ देखता रहा, उसका जी चाहता था कि वो भी उसके साथ बैठ जाये और दोनों मिल कर खाना खाएँ। वो यक़ीनन उसके पास...
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