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ग़ज़ल
अगर हाथों से उस शीरीं-अदा के ज़ब्ह होंगे हम
तो शर्बत के से घूँट आब-ए-दम-ए-ख़ंजर में आवेंगे
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
देखें तो ख़िज़र तेरे आब-ए-दम-ए-ख़ंजर को
मा'लूम नहीं आब-ए-हैवाँ किसे कहते हैं
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
मक़्दूर नहीं हम को फ़र्त-ए-दम-ए-जौलाँ पर
कर देंगे निछावर जाँ हम 'इश्वा-ए-सामाँ पर
डॉ. हबीबुर्रहमान
ग़ज़ल
जोश-ए-गिर्या ये दम-ए-रुख़्सत-ए-यार आए नज़र
अब्र-ए-जोशाँ का बँधा जैसे कि तार आए नज़र
जुरअत क़लंदर बख़्श
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नज़्म
अजनबी
अब ये एहसास दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न होने लगा
अपनी ही नज़्मों का भूला हुआ किरदार हूँ मैं