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ग़ज़ल
शाम से पहले वो मस्त अपनी उड़ानों में रहा
जिस के हाथों में थे टूटे हुए पर शाम के बा'द
फ़रहत अब्बास शाह
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नज़्म
ख़ुद से मिलने की फ़ुर्सत किसे थी
शिकस्ता उड़ानों के टूटे हुए पर समेटूँगी
तुझ को बदन की इजाज़त से रुख़्सत करूँगी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
उड़ानों आसमानों आशियानों के लिए ताइर!
ये पर टूटे हुए मेरे ये मेयार-ए-नज़र ले जा