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ग़ज़ल
ये ख़िज़ाँ की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आँसुओं से हरा करो
बशीर बद्र
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बर्बाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ
अकबर इलाहाबादी
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ग़ज़ल
क़फ़स में मौसमों का कोई अंदाज़ा नहीं होता
ख़ुदा जाने बहार आई चमन में या ख़िज़ाँ आई
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ की रुत में गुलाब लहजा बना के रखना कमाल ये है
हवा की ज़द पे दिया जलाना जला के रखना कमाल ये है
मुबारक सिद्दीक़ी
नज़्म
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ये नग़्मा फ़स्ल-ए-गुल-ओ-लाला का नहीं पाबंद
बहार हो कि ख़िज़ाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ऐ शजर-ए-हयात-ए-शौक़ ऐसी ख़िज़ाँ-रसीदगी
पोशिश-ए-बर्ग-ओ-गुल तो क्या जिस्म पे छाल भी नहीं
जौन एलिया
ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
मर्सिया
ये गर्ग वो यूसुफ़ ये ख़िज़ाँ है वो चमन है
वो चाँद ये अक़रब है वो सूरज ये गहन है