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ग़ज़ल
क़ैद-ए-हस्ती में ये इक गोशा-ए-दामान-ए-ख़याल
फिर ग़नीमत है कि ज़िंदाँ में भी आज़ाद तो हूँ
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
वुसअ'त-ए-दामान-ए-दिल को ग़म तुम्हारा मिल गया
ज़िंदगी को ज़िंदगी भर का सहारा मिल गया
सालिक लखनवी
शेर
पाकी-ए-दामान-ए-गुल की खा न ऐ बुलबुल क़सम
रात भर सरशार-ए-कैफ़िय्यत मैं शबनम से रहा
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
तवज्जोह मुनइमों की नफ़' से ख़ाली नहीं होती
हवा-ए-गोशा-ए-दामान-ए-दौलत आ ही जाती है
असद अली ख़ान क़लक़
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नअत
हाथ में दामान-ए-शाह-ए-दो-जहाँ रखता हूँ मैं
अपने क़ब्ज़े में ज़मीन-ओ-आसमाँ रखता हूँ मैं
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
मिरी हमसरी का ख़याल क्या मिरी हम-रही का सवाल क्या
रह-ए-इश्क़ का कोई राह-रौ मिरी गर्द को भी न पा सका