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मिट्टी की मोना लीज़ा

ए. हमीद

मिट्टी की मोना लीज़ा

ए. हमीद

MORE BYए. हमीद

    स्टोरीलाइन

    कहानी में सामाजिक भेदभाव, ऊँच-नीच का फ़र्क़, ग़रीब और अमीर की ज़िंदगी की मुसीबतों और आसानियों पर बहुत बारीकी से चर्चा की गई है। एक तरफ़ ऊँचा तबक़ा है जो आराम की ज़िंदगी बसर कर रहा है। पढ़ने-लिखने, घूमने-फिरने के लिए दूसरे मुल्कों में जा रहा है। वहीं ग़रीब तबक़ा भी है जिसे अपने बच्चों की फ़ीस, उनकी दवाइयों और दूसरी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एड़ियाँ रगड़नी पड़ती है। उन घरों की औरतें सारा दिन काम करने के बाद थक-हार जब रात को सोती हैं तो उनके चेहरों पर भी मोनालिसा की मुस्कान तैर जाती है।

    मोना लीज़ा की मुस्कुराहट में क्या भेद है?

    उसके होंटों पर ये शफ़क़ का सोना, सूरज का जश्न तुलूअ है या ग़ुरूब होते हुए आफ़ताब का गहरा मलाल? इन नीम वा मुतबस्सिम होंटों के दरमियान ये बारीक सी काली लकीर किया है? ये तूलू-व-ग़ुरूब के ऐन बीच में अंधेरे की आबशार कहाँ से गिर रही है? हरे हरे तोतों की एक टोली शोर मचाती अमरूद के घने बाग़ों के ऊपर से गुज़रती है। वीरान बाग़ की जंगली घास में गुलाब का एक ज़र्द शगूफ़ा फूटता है। आम के दरख़्तों में बहने वाली नहर की पुलिया पर से एक नंग धड़ंग काला लड़का रेतले ठंडे पानी में छलांग लगाता है और पके हुए गहरे बसंती आमों का मीठा रस मिट्टी पर गिरने लगता है।

    सिनेमा हाल के बुक स्टॉल पर खड़े मैं उस मीठे रस की गर्म ख़ुशबू सूँघता हूँ और एक आँख से अंग्रेज़ी रिसाले को देखते हुए दूसरी आँख से उन औरतों को देखता हूँ जिन्हें मैंने फ़िल्म शुरू होने से पहले सब से ऊंचे दर्जों की टिक्टों वाली खिड़की पर देखा था। उस से पहले उन्हें सब्ज़ रंग की लंबी कार में निकलते देखा था और उस से पहले भी शायद उन्हें किसी ख़्वाब के वीराने में देखा था। एक औरत मोटी, भद्दी, जिस्म का हर ख़म गोश्त में डूबा हुआ, आँखों में काजल की मोटी तह, होंटों पर लिपस्टिक का लेप, कानों में सोने की बालियाँ, उंगलीयों पर नील पालिश, कलाइयों में सोने के कंगन, गले में सोने का हार, सीने में सोने का दिल, ढली हुई जवानी, ढला हुआ जिस्म, चाल में ज़्यादा ख़ुशहाली और ज़्यादा ख़ुशवक़्ती की बेज़ारी, आँखों में पुरख़्वारी का ख़ुमार और पेन के साथ लगाया हुआ भारी ज़रतार प्रसिद्व सिरी लड़किया लिटरा माडर्न, अल्ट्रा स्मार्ट, सादगी बतौर ज़ेवर अपनाए हुए, दुब्ली पतली, सबज़ रंग की चुस्त क़मीज़, कटे हुए सुनहरे बाल, कानों में चमकते हुए सब्ज़ नगीने, कलाई में सोने की ज़ंजीर वाली घड़ी और दुपट्टे की रस्सी गले में, गहरे शैड की पेंसिल के अब्रो, आँखों में पुरकार सहर कारी, गर्दन खुले गिरेबान में से ऊपर उठी हुई, दाएं जानिब को उसका हल्का सा मग़रूर ख़म, डोरिस डे कट के बाल, बालों में यूरोपी इत्र की महक, दिमाग़ गुज़री हुई कल के मलाल से ना-आश्ना, दिल आने वाली कल के वस्वसों से बेनियाज़, ज़िंदगी की भरपूर ख़ुशबुओं और मसर्रतों से लबरेज़ जिस्म, कुछ रुका रुका सा मुतहर्रिक सा, कुछ बड़बड़ाता हुआ। उस दूध की तरह जिसे उबाल आने ही वाला हो। सर ऐंग्लो पाकिस्तान, लिबास पंजाबी, ज़बान अंग्रेज़ी और दिल तेरा मेरा।

    बुक स्टाल वाला उन्हें अंदर दाख़िल होते देख कर उठ खड़ा हुआ और कठपुतली की तरह उनके आगे पीछे चक्कर खाने लगा। उसने पंखा तेज़ कर दिया। क्यूँकि लड़की बार बार अपने नन्हे रेशमी रूमाल से माथे का पसीना पूँछ रही थी। मोटी औरत ने मुस्कुरा कर पूछा।

    आप ने लक और वो ट्रियो स्टोरी नहीं भिजवाए।

    स्टॉल वाला अहमक़ों की तरह मुस्कराने लगा।

    वो जब अब के हमारा माल रास्ते में रुक गया है। बस इस हफ़्ते के अंदर अंदर सर्टनली भेजवा दूंगा। मोटी औरत ने कहा।

    प्लीज़, ज़रूर भेजवा दें।

    लड़की ने फोटोग्राफी का रिसाला उठा कर कहा,

    प्लीज़ इसे पैक कर के गाड़ी में रखवा दें।

    बुक स्टॉल वाला बोला।

    क्या आप इंटरवल में जा रही हैं।

    मोटी औरत बोली,

    इस पिक्चर बड़ी बोर है।

    उन्होंने साढे़ तीन रुपये के टिकट लिए थे। पिक्चर पसंद नहीं आई। लंबी कार का दरवाज़ा खोल दिया और कार दरिया की पुरसुकून लहरों की तरह सात रूपों के ऊपर से गुज़र गई। वो सात रुपये जिन के ऊपर से लहोरी दरवाज़े के एक कुंबे के पूरे सात दिन गुज़रते हैं।

    और लोहारी दरवाज़े के बाहर एक गंदा नाला भी है। अगर आप को इस कुंबे से मिलना हो तो इस गंदे नाले के साथ साथ चले जाएँ। एक गली दाएँ हाथ को मिलेगी। उस गली में सूरज कभी नहीं आया लेकिन बदबू बहुत आती है। ये बदबू बहुत हैरत अंगेज़ है। अगर आप यहाँ रह जाएँ तो ये ग़ायब हो जाएगी। यहाँ सुग़राँ बीबी रहती है। एक बोसीदा मकान की कोठड़ी मिल गई है। दरवाज़े पर मैला चीकट बोरिया लटक रहा है, पर्दा करने के लिए जिस तरह नए मॉडल की शेर लेट कार में सब्ज़ पर्दे लगे होते हैं। सहन कच्चा और नुमूदार है। एक चारपाई पड़ी है। एक तरफ़ चूल्हा है। ऊपलों का ढेर है। दीवार के साथ पकाने वाली हंडिया मिट्टी का लेप फेरने वाली हंडिया और दस्त-ए-पनाह लगे पड़े हैं। एक सीढ़ी चढ़ कर कोठड़ी का दरवाज़ा है। कोठड़ी का कच्चा फ़र्श सीला है। दर-व-दीवार से नुमूदार अंधेरा रिस रहा है। सामने दो संदूक़ एक दूसरे के ऊपर रखे हैं। संदूक़ के ऊपर सूग़राँ बीबी ने पुराना खेस डाल रक्खा है। कोने में एक टोकरा लेटा रक्खा है। जिस के अंदर दो मुर्ग़ियां बंद हैं। दीवार में दो सलाखें ठोंक कर ऊपर लकड़ी का तख़्ता रक्खा है। इस तख़्ते पर सुग़राँ बीबी ने अपने हाथ से अख़बार के काग़ज़ काट कर सजाए हैं और तीन गिलास और चार थालियाँ टेका दी हैं। अंदर भी एक चारपाई बिछी है। उस चारपाई पर सुग़राँ बीबी के दो बच्चे सो रहे हैं। दो बच्चे स्कूल पढ़ने गए हैं। सुग़राँ बीबी बड़ी घरेलू औरत है। बिल्कुल आईडियल क़िस्म की मशरिक़ी औरत। ख़ावंद महीने की आख़िरी तारीख़ों में पिटाई करता है तो रात को उसकी मुट्ठीयाँ भर्ती है। वो लात मारता है तो सुग़राँ बीबी अपना जिस्म ढीला छोड़ देती है। कहीं ख़ाविंद के पांव को चोट जाए। कितनी आइडियल औरत है ये सुग़राँ बीबी यक़ीनन ऐसी ही औरतों के सर पर दोज़ख़ और पाँव के नीचे जन्नत होती है। ख़ाविंद डाकिया है। साठ रुपये की कसीर रक़्म हर महीने की पहली को लाता है। पाँच रुपये कोठरी का किराया, पाँच रुपये दोनों बच्चों के स्कूल की फ़ीस, बीस रुपये दूध वाले के और तीस रुपये महीने भर के राशन के बाक़ी जो पैसे बचते हैं उनमें ये लोग बड़े मज़े से गुज़र बसर करते हैं। कभी कभी सुग़राँ बीबी साढे़ तीन रूपों वाली क्लास में बैठ कर फ़िल्म भी देख आती है और अगर पिक्चर बोर हो तो इंटरवल में उठ कर लंबी कार में बैठ कर अपने घर जाती है। बुक स्टॉल वाला हर महीने अंग्रेज़ी रिसाला लक और लाईफ़ उसे घर पर ही पहुँचा देता है। वो खाने के बाद मीठी चीज़ ज़रूर खाती है। दूध की क्रीम में मिले हुए अनन्नास के क़त्ले सुग़राँ बीबी और उसके ख़ाविंद डाकिए को बहुत पसंद हैं। क्रीम को महफ़ूज़ रखने के लिए उन्होंने अपनी कोठड़ी के अंदर एक रेफ्रीजरेटर भी ला कर रखा हुआ है। सुग़राँ बीबी का ख़याल है कि वो अगली तनख़्वाह पर कोठड़ी को एयर कंडीशंड करवा ले क्यूँकि गर्मी हब्स और गंदे नाले की बदबू की वजह से उसके सारे बच्चों के जिस्मों पर दाने निकल आते हैं और रात भर उन्हें उठ उठ कर पंखा झेलती रहती है। सुग़राँ बीबी ने एक रेडियो ग्राम का आर्डर भी दे रक्खा है।

    माई गॉड व्हाट लव्ली होम इज़ दिस। होम! स्वीट होम!

    (My God! What a lovely home is this। Home, Sweet Home!)

    सुग़राँ बीबी का रंग हल्दी की तरह है और हल्दी टी बी के मर्ज़ में बे-हद मुफ़ीद है। उसके हाथों में काँच की चूड़ियाँ हैं।महीने के आख़िर में जब उसका ख़ाविंद उसे पीटता है तो उनमें से अक्सर टूट जाती हैं। चुनांचे अब वो उस हर माह के ख़र्च से बचने के लिए सोने के मोटे कंगन बनवा रही है। कम अज़ कम वो टूट तो नहीं सकेंगे। सुग़राँ बीबी के चारों बच्चों का रंग भी ज़र्द है और हड्डियाँ निकली हुई हैं। डाक्टर ने कहा है उन्हें कैल्शियम के टीके लगाओ। हर रोज़ सुब्ह मक्खन, फल, अंडे, गोश्त और सबज़ियाँ दो। शाम को अगर यख़्नी का एक एक पियाला मिल जाए तो बहुत अच्छा है और हाँ उन्हें जिस क़दर मुम्किन हो गंदे कमरों, बदबू दार महलों और अंधेरी कोठरियों से दूर रक्खो। सुग़राँ बीबी का ख़याल है कि वो अगली से अगली तनख़्वाह पर गुलबर्ग या कैनाल पार्क में किसी जगह उन बच्चों के लिए ज़मीन का छोटा सा टुकड़ा लेकर वहाँ एक छोटा सा तीन चार कमरों वाला मकान बनवा लेगी। दो छोटे बच्चे अब स्कूल भी नहीं जाते लेकिन इनशा-अल्लाह ताला वो भी एक दिन स्कूल जाना शुरू कर देंगे और जो दो बच्चे मज़ीद पैदा होंगे वो भी स्कूल ज़रूर जाएंगे। अब की दफ़ा वो उन्हें कानवेंट में दाख़िल करवाने का इरादा रखती है। जहाँ वो हर सुब्ह ख़ुदा के बेटे की दुआ पढ़ें। सुग़राँ बीबी को मम्मी कहें, फ़रफ़र अंग्रेज़ी बोलें और उर्दू फ़ारसी पढ़ कर तेल बेचने की बजाए मुक़ाबले के इम्तिहान में बैठें और ऊंचा मर्तबा और लंबी कार और चौड़े लॉन वाली कोठी पाएँ।

    कैल्शियम के टीकों का पूरा सीट बीस रुपये में आता है। ये तो मामूली बात है। अब की वो अपने ख़ाविंद से कहेगी कि डाकखाने से पहली तारीख़ को घर आते हुए दो सीट लेते आओ। अपनी कोठरी वाला रेफ्रीजरेटर उसने लाल लाल सेबों, सुर्ख़ अनारों, मोटे अंगूरों, मक्खन की टिकियों, ताज़ा अंडों और गोश्त के क़त्लों से भर दिया है। बच्चे सारा महीना मज़े से खाएंगे और मौज उड़ाएंगे लेकिन ख़ुदा की दी हुई हर नेअमत के होते हुए भी सुग़राँ बीबी के रुख़्सार की हड्डियाँ बाहर को निकली हुई हैं। कमर में मुस्तक़िल दर्द रहता है, चेहरा ज़र्द हो कर पीला पड़ गया है। आँखें फटी फटी सी, वीरान वीरान सी रहती हैं। इन आँखों ने क्या देख लिया है? उस की उम्र पच्चीस साल से ज़्यादा नहीं। मगर उसका जिस्म ढल गया है। अंदर ही अंदर घुल गया है। हाथ की नसें उभर आई हैं। कंघी करते हुए ढेरों बाल झड़ते हैं। हाथ पैर हर वक़्त ठंडे रहते हैं जिस तरह रेफ्रीजरेटर में क्रीम, फल और गोश्त ठंडा रहता है। सुग़राँ बीबी की शादी को पाँच साल हो गए हैं और ख़ाव्ंद ने उसे सिर्फ़ चार बच्चे अता किए हैं। ख़ुदा उसे सलामत रखे अभी और बच्चे पैदा होंगे। हर पहली तारीख़ को उसके ख़ाव्ंद को सुग़राँ बीबी से मोहब्बत हो जाती है। जब बीस रुपये दूध वाला ले जाता है तो मोहब्बत के इस ताज का एक बुर्ज गिरता है। पाँच रुपये किराया जाता है तो दूसरा बुर्ज गिरता है। फिर बच्चों की फीसें, कापियां, पैंसिलें, किताबें, राशन, दाल, आटा, नमक, मिर्च, हल्दी, उपले, कपड़ा, परेशानी, तफ़क्कुरात, वस्वसे, मलाल और उम्मीदियाँ और ये ताज महल गुंबद समेत ज़मीन के साथ आन लगता है और ख़ावंद अपनी मोहब्बत की पिटारी में से डंडा निकाल कर अपनी पहली तारीख़ की महबूबा की पिटाई शुरू कर देता है।

    वंडर फ़ुल होम!

    डैडी! आज आप कॉमिक नहीं लाए!

    मम्मी! ये जेली गंदी है उसे फेंक दें।

    कम आन डार्लिंग सुग़राँ बीबी! आज अलहमरा में कल्चरल शो देखें। डांस, म्यूज़िक, व्हाट थ्रिल! हनी! बस ये वाइट साड़ी ख़ूब मैच करेगी और इस के साथ बालों में सफ़ैद मोतिए के फूलों का गजरा माई माई! यू आर स्वीट डार्लिंग सुग़राँ बीबी!

    नदी किनारे ये काटेज किस क़दर ख़ूबसूरत है। सरसब्ज़ लॉन, तर्शी हुई घास, क़तार में लगे हुए फूलों के पौदे एक मुलाज़िम ग़ुसलख़ाने में लुक्स साबुन से कुत्ते को नहला रहा है। इस के बाद तौलिए से उसका जिस्म ख़ुश्क किया जाएगा। कंघी फेरी जाएगी। गले में एपरन बांधा जाएगा और उसे दो आदमियों का खाना खिला जाएगा और फिर फ़ोर्ड कार में बैठ कर माल रोड की सैर करवाई जाएगी। आज अगर गौतमबुद्ध ज़िंदा होता तो वो जानवरों के साथ इंसानों की इतनी शदीद मोहब्बत को देख कर कितना ख़ुश होता। आज उसे इंसानी दुखों और मुसीबतों को देख कर महल छोड़कर जंगल में जा बैठने की कभी भी ज़रूरत महसूस होती बल्कि वो महल ही में अपनी बीवी बच्चे और और लौंडियों के साथ रहता। कुत्तों की एक पूरी फ़ौज रखता, शाम को कलब में जा कर दोस्तों के साथ ताश खेलता, सिनेमा देखता और बच्चों को साथ लेकर उन्हें कार में सैर करवाता। उसके बच्चे रंगदार क़मीज़ और जीन्ज़ पहन कर गर्दन अकड़ा कर, छोटी सी छाती फुला कर, पतली सी कमर मटका कर, कॉलेज वाले बस स्टापों, आला होटलों और नाच घरों के चक्कर लगाते। वो रात को एक बजे सोते और सुब्ह मुँह अंधेरे ग्यारह बजे उठते और दाँत साफ़ किए बगै़र चाय पीते, अख़बार में फिल्मों का प्रोग्राम देखते। गर्मियाँ कभी मरी और कभी सुइटज़रलैंड में बसर करते और अपने बाप का नाम रौशन करते और उसे कभी बाल मुंडवा कर शाही लिबादा फेंक कर नंगे पाँव निर्वाण हासिल करने के लिए जंगल का रुख़ करने देते।

    उफ़! माई गडंस! लौहारी दरवाज़े की उस गंदी गली में किस क़द्र हबस है। ये लोग कैसे चारपाई गंदी नालियों पर डाल कर सो रहे हैं। व्हाट पट्टी! मुझे उन लोगों से बड़ी गहरी हमदर्दी है। मैं उनके तमाम मसाएल से वाक़िफ़ हूँ। मैं हर हफ़्ते उनकी फीकी और बे-रस ज़िंदगी पर एक अफ़साना लिखता हूँ। मेरा ख़याल है कि मैं उन लोगों की ज़िंदगी पर एक पुर-मग़्ज़ तहक़ीक़ी मक़ाला लिख कर सबमिट करवा दूँ। बड़ा वंडरफुल सब्जेक्ट है। डाक्टरेट तो वो पड़ी है जिस तरह वो खड़ी चारपाई पड़ी है, जिस पर तीन फुंसियों ज़दा बच्चे और एक बच्चा ज़दा माँ सो रही है। मैं नाक पर रूमाल रखे, परनालो से अपने उजले कपड़े बचाता, उन लोगों का गहरा मुताला करता बद्बूदार गली से बाहर निकल आया हूँ।

    लाहौर में क़यामत की गर्मी पड़ रही है लेकिन इस होटल की फ़िज़ा किस क़द्र ख़ुनक है, एयर कंडीशंज भी ख़ुदा की कितनी बड़ी नेअमत है। आज होटल में बड़ी रौनक है। सायादार धीमे क़ुमक़ुमों की मुलायम रौशनी में लोगों के चेहरे कितने ख़्वाब आवर दिखाई दे रहे हैं। ये कहीं ख़्वाब ही तो नहीं। मेरा ख़्वाब सुग़राँ बीबी का ख़्वाब, उसके डाकिए ख़ावंद का ख़्वाब! हरी ओम! वो पूनी टेल वाली लड़की कितनी प्यारी है और वो ब्लैक टिशू की चुस्त क़मीज़ वाली दोशीज़ा जिस के बालों में रेल के गुजरे हैं, कानों में ज़हरीले रंग के नगीने हैं और जिस का चेहरा बाक़ायदा और क़ुव्वत बख़्श ग़िज़ाओं के असर से खाना खाने वाले चांदी के चम्मच की तरह चमक रहा है और वो मुर्ग़न चेहरे वाली मोटी औरत जिस की आधी आस्तीनों वाली क़मीज़ बाज़ुओं पर गोश्त के अंदर धंस गई है। उस औरत का चेहरा मोम के बुत की तरह है। बहस और ठंडा। उसकी गाड़ी चौदह गज़ लंबी है और ग़ुसुलख़ाने का फ़र्श बारह मुरब्बागज़ है। उसने रेडियो ग्राम जर्मनी से मंगवाया है। क़ालीन ईरान से, इत्र फ़्रांस से, कैमरा अमरीका से, ख़ावंद पाकिस्तान से हासिल किया है। जितने पैसों का सुग़राँ बीबी के हफ़्ते भर का राशन आता है इतने पैसे ये बैरे को टिप कर देती है। उस के बंगले में चार कुत्ते और सात बैरे रहते हैं। ये हमेशा चांदी के काफ़ी सेट में काफ़ी पीती है। चांदी के बर्तनों में बड़ी ख़ूबी ये होती है कि एक तो उन्हें ज़ंग नहीं लगता दूसरे वो नान-प्वाइज़न्स होते हैं। एक सीट अपने घरेलू इस्तेमाल के लिए लाहौरी दरवाज़े की गली वाले डाकिए को भी ख़रीद लेना चाहिए।

    ये होटल तो बिल्कुल जन्नत है। एक जोड़ा सब से अलग बैठा है। लड़की दुबली पतली सी है। चुस्त कपड़ों ने उसे और दुबला बना दिया है। बाल माथे पर हैं। नाखुनों पर रैड इंडियन गुलाबी रंग का पालिश चमक रहा है। इसी शैड की लिपस्टिक की हल्की सी तह पतले पतले होंटों पर है। चेहरे पर निस्वानी नज़ाकत के साथ साथ जज़्बात का धीमा धीमा हैजान सा है। कान अपने साथी की बातों पर हैं और बेचैन आँखें मौक़ा मिलने पर एक एक मेज़ का जाएज़ा ले रही हैं। लड़के की गर्दन काली बू और बॉर्डर कालर में बुरी तरह फंसी हुई है। उनके सामने कोल्ड काफ़ी के गिलास हैं।

    रोशि डार्लिंग! मैं प्रॉमिस करता हूँ कल से सनोई के साथ कोई कंसर्न नहीं रखूंगा।

    शट अप बिग लायर तुम मुझ से फ्लर्ट कर रहे हो।

    फ़ार गॉड सेक डोंट थिंक लायक दि टाई नो यू डार्लिंग!

    लाई झूट, बिल्कुल झूट।

    मैं यू.के. से वापस आते ही तुम से शादी कर लूँगा।

    तुम वहाँ शादी कर के आओगे।

    नो नेवर तुम ख़ुद देख लोगी। फिर हम दोनों यू.के चले जाएँगे और वहीं जा कर सेटल हो जाएँगे। मैं इस गंदे शहर से बोर हो गया हूँ बैरा!

    यस सर।

    एक क्रीम पफ़

    यस सर।

    वुड यू लाइक मोर डार्लिंग?

    नो थैंक यू

    मैं भी सोच रहा हूँ कि यू.के जा के सेटल हो जाऊँ। मैं भी अपनी गंदी गलियों से बोर हो गया हूँ। शायद मैं सुग़राँ बीबी और उसकी गली में खड़ी चारपाई पर माँ के साथ सोने वाले फंसी ज़दा बच्चों को भी लेता जाऊँ।

    बीरा थ्री सिकवेश मोर।

    ऊपर गैलरी को जाने वाली सीढ़ियों के पास वाली मेज़ पर तीन मेडिकल स्टूडैंट बैठे बातें कर रहे हैं। गुफ़्तगु बुरशि बारिद वित्त के कूल्हों, उगा था क्रिस्टी के नाविलों और पक्का डली की पुर-इसरार गलियों से हो कर मेडिकल पेशे में कर ठहर गई है।

    यार! मैं तो फाईनल से निकल कर सीधा लंदन चला जाऊँगा। यहाँ कोई फ्यूचर नहीं है।

    बालकलमें भी वहीं जा कर प्रैक्टिस करूँगा। बिरादर वहाँ पैसा भी है और मरीज़ भी बड़े पॉलिश्ड होते हैं।

    यार मैं तो यू.के जा कर कैंसर ट्रीटमेंट में स्पेशलाइज़ करूँगा। यहाँ कैंसर स्पैशलिस्ट के बड़े चांसेज़ हैं। बीस रुपये फ़ीस रखूँगा और एक साल बाद अपना क्रीम कलर की फिफ्टी एट मॉडल शो होगी और गुलबर्ग में एक कोठी

    भई यार तुम ने हिल मैन क्यूँ बेच दी?

    छकड़ा हो गई थी। ऑयल बड़ा खाने लगी थी।

    शि! मिस क़ुरैशी रही है।

    सिद्दीक़ी! तुम ने उसकी बड़ी बहन मिसेज़ इरशाद को परसों ग्रिफिन में देखा था? अरे भई। तुम साथ ही तो थे। क्या क्लास वन औरत है।

    नो डाउट बिल्कुल लोलो बरेजडा

    सब लोग पाकिस्तान से बाहर जा रहे हैं। कोई बरशि बारिदूत के पास, कोई लोलो बरेजडा के पास, किसी को बीवी लिए जा रही है, कोई बीवी को लिए जा रहा है, किसी को पैसा खींच रहा है और किसी को पॉलिश्ड क़िस्म के मरीज़। हम लोग कहाँ जाएँ? मेरा भाई डाकिया कहाँ जाएगा? सुग़राँ बीबी कहाँ जाएगी? उसके बीमार बच्चों का इलाज कौन करेगा? मसाने की बीमारी में नीम हकीम से गुर्दे की दर्द की दवा खा जाने वाले देहाती कहाँ जाएँगे? उन लोगों का इलाज पाकिस्तान में कौन करेगा? कोने वाली मेज़ पर एक पाकिस्तानी आदमी अमरीकियों की तरह कंधे उचका कर अपने साथी को कह रहा है। बड़ी प्राब्लम बन गई है।

    कैसी प्राब्लम?

    सब ड्राइंग रुम लोरज़ हैं, ठंडी नशिस्त गाहों में, अनन्नास के क़त्ले और कोल्ड काफ़ी का गिलास सामने रख कर मोहब्बत की सर्द आहें भरने वाले आशिक़ हैं। यूकिलिप्टस की पत्तियों का फ़्रैंच इतर कानों पर लगा कर कहानियाँ लिखने वाले अफ़्साना निगार हैं। क़ौम, मज़हब, मिल्लत और सियासत के नाम पर अपनी गाड़ियों में पैट्रोल डलवाने वाले और अपनी कोठियों में नए कमरे बनवाने वाले दर्द मंदान-ए-क़ौम हैं। इशरत अंगेज़ी है, तसना आमेज़ी है, ज़र परस्ती है, ख़ुद पसंदी है, जाली सिक्के हैं कि एक के बाद बनते चले जा रहे हैं। रौशनी के दाग़ हैं कि एक के बाद एक उभरते चले जा रहे हैं। उन्हें सुग़राँ बीबी के बच्चों की फुंसियों से कोई सरोकार नहीं। उन्हें उस के डाकिए ख़ावंद के ताज महल की बर्बादी का कोई इल्म नहीं। उन्हें खड़ी चारपाई पर गंदे नाले के पास रात बसर करने वालों से कोई दिलचस्पी नहीं। धान ज़मीन में उगता है या दरख़्तों पर लगता है उन्हें कोई ख़बर नहीं। ये अपने मुल्क में अजनबी हैं। ये अपने घर में मुसाफ़िर हैं। ये अपनों में बेगाने हैं। चैकबुक, पासपोर्ट, कार की चाबी, कोठी और लाइसंस ही इन का पाकिस्तान है। ये वो बासी खाने हैं जिन की ताज़गी रेफ्रीजरेटर भी बरक़रार रख सका। ये दो सूरजों के दरमियान का पर्दा हैं। ये खुले हुए मुतबस्सिम लबों के दरमियान तारीक लकीर हैं। ये इस ग़ार के मुँह पर तना हुआ जाला हैं जहाँ चांद तुलू हो रहा है।

    अब रात आसमान की राख में से तारों के अंगारे कुरेदने लगी है। लाहौरी दरवाज़े की तंग-व-तारीक गली में हब्स है, बदबू है, गर्मी है, मच्छर हैं, पसीना है, टूटी फूटी खड़ी चारपाइयों की बैंगी टेढ़ी क़तारें हैं, नालियों पर जमी हुई गंदगी है। चारपाइयों से नीचे लटकती हुई गली के फ़र्श पर लगी हुई टांगें हैं। कमज़ोर बासी चेहरे हैं। फटे फटे होंट हैं। सुग़राँ बीबी अपने चारों बच्चों को पंखा झेल रही है। कोठरी में हब्स के मारे दम घुटा जा रहा है। गंदे नाले वाली खिड़की में गर्म एशियाई रात के सब्ज़ चाँद की जगह ऊपलों का ढेर पड़ा सुलग रहा है। उसका डाकिया ख़ावंद पास ही पड़ा खर्राटे ले रहा है। पंखा झेलते झलते अब सुग़राँ बीबी भी औघने लगी है। अब पंखा इस के हाथ से छूट कर नीचे गिर पड़ा है। अब कमरे में अंधेरा है। ख़ामोशी है। चार बच्चों के दरमियान सोई हुई मिट्टी की मोना लीज़ा के होंट नीम वा हैं। चेहरा खिंच कर भयानक हो गया है। आँखों के हलक़े गहरे हो गए हैं और रुख़्सारों पर मौत की ज़रदी छा गई है। इस पर किसी ऐसे बोसीदा मक़बरे का गुमान हो रहा है, जिस के गूंबद में दराड़ें पड़ गई हों, जिस के तावीज़ पर कोई अगरबत्ती सुलगती हो और जिस के सहन में कोई फूल खिलता हो।

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