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शेर
बारहा ठिठका हूँ ख़ुद भी अपना साया देख कर
लोग भी कतराए क्या क्या मुझ को तन्हा देख कर
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
बारहा ठिठका हूँ ख़ुद भी अपना साया देख कर
लोग भी कतराए क्या क्या मुझ को तन्हा देख कर
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
ठिठका तो था फिर जाने क्या सोच के आगे बढ़ता गया
पा-ए-वफ़ा में यूँ तो चुभे थे तेरी जफ़ा के ख़ार बहुत