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ग़ज़ल
रफ़्ता रफ़्ता मुंक़लिब होती गई रस्म-ए-चमन
धीरे धीरे नग़्मा-ए-दिल भी फ़ुग़ाँ बनता गया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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रफ़्ता रफ़्ता मुंक़लिब होती गई रस्म-ए-चमन
धीरे धीरे नग़्मा-ए-दिल भी फ़ुग़ाँ बनता गया
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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