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ग़ज़ल
बज़्म-ए-मय वहशत-कदा है किस की चश्म-ए-मस्त का
शीशे में नब्ज़-ए-परी पिन्हाँ है मौज-ए-बादा से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सफ़र जारी है सदियों से हमारा नब्ज़-ए-आलम में
निगाहों से ज़माने की मगर रू-पोश रहते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
हुस्न के बाब में 'अकबर' की सनद काफ़ी है
हम भी हर इक बुत-ए-कमसिन को परी कहते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
ख़ेमा-ए-अफ़्लाक का इस्तादा इसी नाम से है
नब्ज़-ए-हस्ती तपिश-आमादा इसी नाम से है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जूँ पंच-शाख़ा तू न जला उँगलियाँ तबीब
रख रख के नब्ज़-ए-आशिक़-ए-तफ़्ता-जिगर पे हाथ
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तड़प कर शिद्दत-ए-ग़म से जब उन का नाम लेते हैं
ये वहशी नब्ज़-ए-रफ़्तार-ए-दो-'आलम थाम लेते हैं
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
इसी तश्ख़ीस पर इतरा रहा था एक मुद्दत से
मसीहा देख नब्ज़-ए-बहर-ओ-बर कुछ और कहती है
याक़ूब उस्मानी
नज़्म
नक़्क़ाद
रहम ऐ नक़्क़ाद-ए-फ़न ये क्या सितम करता है तू
कोई नोक-ए-ख़ार से छूता है नब्ज़-ए-रंग-ओ-बू