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ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं

आल-ए-अहमद सुरूर

ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं

आल-ए-अहमद सुरूर

MORE BYआल-ए-अहमद सुरूर

    ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं

    कम-निगाही को भी वो दीदा-वरी कहते हैं

    फ़िक्र-ए-रौशन को वो शोरीदा-सरी कहते हैं

    यानी सूरज को चराग़-ए-सहरी कहते हैं

    जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का रहा

    उस की क़िस्मत में रही दर-बदरी कहते हैं

    कितनी बे-रहम है फ़ितरत उन्हें मालूम नहीं

    जो उसे कारगह-ए-शीशागरी कहते हैं

    हुस्न के बाब में 'अकबर' की सनद काफ़ी है

    हम भी हर इक बुत-ए-कमसिन को परी कहते हैं

    रूह-ए-सय्यद पे ख़ुदा जाने गुज़र जाएगी क्या

    आम अलीगढ़ में हुई कम-नज़री कहते हैं

    RECITATIONS

    नोमान शौक़

    नोमान शौक़,

    नोमान शौक़

    ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं नोमान शौक़

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