aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "नीम-पोशीदा"
जिस्म और इक नीम-पोशीदा हवस-आमादगीआँख और सैर-ए-लिबास-ए-मुख़्तसर करती हुई
दाऊ जी आहिस्ता आहिस्ता सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर आ जाते और कापियों के नीचे नीम पोशीदा चारपाइयाँ देख कर कहते, "क़ुर्रह बेटा तू इसको चिढ़ाया न कर। ये जिन बड़ी मुश्किल से क़ाबू किया है। अगर एक बार बिगड़ गया तो मुश्किल से संभलेगा।" बेबी कहती, "कापी उठा कर देख...
तुम्हारी नीम-वा आँखों में जाने क्या है पोशीदाकि शोख़ी है ग़ज़ब है प्यार है या क़हर है जानाँ
लफ़्ज़ की छाँव मेंनीम की पत्तियों का सफ़र तल्ख़ सा
इक टीस ब-मुश्किल थम थम कर अश्कों की ज़बाँ तक पहुँची हैमा'लूम नहीं बर्बादी-ए-दिल पहुँची तो कहाँ तक पहुँची है
नीम-पोशीदाنیم پوشیدہ
half-hidden
आलम-ए-हैरत का देखो ये तमाशा एक औरयार ने आईने में अपना सा देखा एक और
कुजा हस्ती बता दे तू कहाँ हैजिसे कहते हैं बिस्मिल नीम-जाँ है
नींद को दूर करने के लिए मैंने ख़ूब क़हवा पिया... थोड़ी देर के बाद मुझे नींद के झोंके आने लगे। मैंने चाहा कि मुलाज़िम को ख़बरदार रहने की ताकीद करके ख़ुद सो जाऊँ मगर देखा तो वो पहले ही गहरी नींद के मज़े ले रहा था। मैंने उसे आवाज़ें दीं।...
हुआ ख़ेमा-ज़न कारवान-ए-बहारइरम बन गया दामन-ए-कोह-सार
लारनज़ो की लाश कई रोज़ तक मुक़द्दस पहाड़ी की चोटी पर गड़ी सलीब से झूलती रही। उन्होंने उसे सलीब पर मेख़ों से गाड़ने की बजाय एक रस्सा लटका कर फांसी दी थी। मेख़ें महंगी होती हैं। एक मर्तबा गाड़ी जाएं तो आसानी से उखड़ती नहीं। ज़ाए हो जाती हैं। रस्सा...
“मुझे उससे दस घंटे मुहब्बत हुई थी सिर्फ़ दस घंटे... इसके बा’द मेरा दिल ख़ाली हो गया।”...
'नगो चौड़ी' ये भी अच्छी तरह जानती थी कि मेरी क़ुर्बत से ज़्यादातर दूर भागने वाली आपी अपनी ग़ैरमौजूदगी की तलाफ़ी मुझ पर नोटों की बारिश बरसा कर करती थी और वो नोट मुलाज़िमों को अटेरने के इलावा मेरे किसी काम नहीं आसकते थे। 'नगो मिहतरानी' ने जब मेरे बदन...
“नहीं अम्मी, आप छोटे चचा को मना’ कर दें, मैं उनकी किसी बेटी से शादी नहीं करूँगा।” आ’ज़म ने फ़ैसला-कुन अन्दाज़ में कहा। “मगर तुम ऐसा टका सा जवाब क्यों दे रहे हो? बात को समझो बेटा। तुम्हारे अब्बू भी यही चाहते हैं।”...
“ऐसी भी चीज़ें हैं जो अश्या के क़वाइदी नज़्म में फिट नहीं बैठतीं, लेकिन ज़रूरी नहीं है कि ये मुआमलात अंधे, नाक़ाबिल-ए-तसव्वुर यासिरी Mystical हों। बस वो ऐसे मुआमलात हैं जिन्हें किसी अलामती नज़्म-ए-फ़िक्र के ज़रिए ही तसव्वुर किया जा सकता है, तौज़ीही और तफ़सीली ज़बान के ज़रिए नहीं ।”...
जब दोपहर को माँ बच्चे को जन्नो को देकर दाई से पेट मलवाने कोठड़ी में चली जाती या अपनी सहेलियों से कोई निहायत ही पोशीदा बात करती होती तो वो भय्या को गोद में लिटा कर जाने क्या सोचा करती। वो उसका छोटा सा मुंह चूमती। मगर उसका जी मतलाने...
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