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नज़्म
हम जो तारीक राहों में मारे गए
तेरे होंटों के फूलों की चाहत में हम
दार की ख़ुश्क टहनी पे वारे गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
कुम्हलाए हुए फूलों की तरह कुम्हलाए हुए से रहते हैं
पामाल न कर बर्बाद न कर
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
मैं तो उस दिन से हिरासाँ हूँ कि जब हुक्म मिले
ख़ुश्क फूलों को किताबों में न रक्खे कोई
परवीन शाकिर
नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
दुनिया अम्न और ख़ुश-हाली के फूलों से सजाई जाएगी
वो सुब्ह हमीं से आएगी