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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
हिसाब-ए-माह-ओ-साल ओ रोज़-ओ-शब वो सोख़्ता-बूदश
मुसलसल जाँ-कनी के हाल में रखता भी तो कैसे
जौन एलिया
ग़ज़ल
चुरा के ख़्वाब वो आँखों को रेहन रखता है
और उस के सर कोई इल्ज़ाम भी नहीं आता