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हास्य शायरी
ख़ुद अपने आप से कद इस क़दर हमें है कि अब
रिवायतें ही गुलिस्ताँ की फूँक डाली हैं
मोहसिन एहसान
ग़ज़ल
ज़िंदा रखीं बुज़ुर्गों की हम ने रिवायतें
दुश्मन से भी मिले तो मिले आजिज़ी से हम
माजिद अली काविश
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
इक मुश्त-ए-ख़ाक आग का दरिया लहू की लहर
क्या क्या रिवायतें हैं यहाँ आदमी के साथ