हिचकी पर शेर

हिन्दुस्तानी असातीरी

रिवायात के हवाले से हिचकी का सबब यही समझा जाता है कि कोई याद कर रहा है। इस क़िस्म के तसव्वुरात सच और झूट से मावरा होते हैं। शायरों ने भी हिचकी को उस के इसी तनाज़ुर में बरता है। कुछ अशआर का इन्तिख़ाब हम आपके लिए पेश कर रहे हैं।

आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए

मौत भी मैं शाइराना चाहता हूँ

क़तील शिफ़ाई

'अमीर' अब हिचकियाँ आने लगी हैं

कहीं मैं याद फ़रमाया गया हूँ

अमीर मीनाई

मुझे याद करने से ये मुद्दआ था

निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते

दाग़ देहलवी

हिचकियाँ रात दर्द तन्हाई

भी जाओ तसल्लियाँ दे दो

नासिर जौनपुरी

हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म

झटके दे कर तार तोड़े जा रहे हैं साज़ के

नातिक़ गुलावठी

हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम

देखना उन की फ़रामोशी को मेरी याद को

सख़ी लख़नवी

ख़बर देती है याद करता है कोई

जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते

अफ़सर इलाहाबादी

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