फ़रामोशी पर शेर

फ़रामोशी शायरी में आशिक़

और माशूक़ के दर्मियान की एक कैफ़ियत है। इश्क़ के इस खेल में एक लमहा ऐसा भी आता है जब दोनों थक कर एक दूसरे को फ़रामोश करने और भुलाने की तर्कीबे सोचते हैं लेकिन याद ऐसी सख़्त-जान होती है कि किसी न किसी बहाने पलट कर आ ही जाती है। ये वो तजर्बा है जिस से हम सब गुज़रे है और गुज़रते हैं इस लिए ये शायरी भी हमारी अपनी है उसे पढ़िए और आम कीजिए।

हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम

देखना उन की फ़रामोशी को मेरी याद को

सख़ी लख़नवी

हम फ़रामोश की फ़रामोशी

और तुम याद उम्र भर भूले

मिर्ज़ा अज़फ़री

गो फ़रामोशी की तकमील हुआ चाहती है

फिर भी कह दो कि हमें याद वो आया करे

अबरार अहमद

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

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