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नातिक़ गुलावठी

1886 - 1969 | नागपुर, भारत

नातिक़ गुलावठी

ग़ज़ल 45

अशआर 110

अब मैं क्या तुम से अपना हाल कहूँ

ब-ख़ुदा याद भी नहीं मुझ को

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उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला

हम चले जिस्म-ए-बे-जाँ अलविदाअ'

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जुनूँ बाइस-ए-बद-हाली-ए-सहरा क्या है

ये मिरा घर तो नहीं था कि जो वीराँ होता

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कुछ नहीं अच्छा तो दुनिया में बुरा भी कुछ नहीं

कीजिए सब कुछ मगर अपनी ज़रूरत देख कर

रखता है तल्ख़-काम ग़म-ए-लज़्ज़त-ए-जहाँ

क्या कीजिए कि लुत्फ़ नहीं कुछ गुनाह का

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