aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सिंधूरी"
राज कुमार सूरी नदीम
born.1925
शायर
उबैदुल्लाह सिंधी
1872 - 1944
लेखक
तारिक़ सिंधी
born.1947
लाला सिरी राम
1875 - 1930
बेताब सूरी
उर्दू सिंधी अदबी फाउंडेशन
पर्काशक
इरफ़ान दानिश सिकंदरी
मैसर्स राम लाल सूरी एंड संस, अनारकली, लाहौर
रेहाना कौसर सिलहरी
सिरी लल्लो जी लाल
1762/3 - 1825
संपादक
मतबा आईना-ए-सिकंदरी
अमृता चंद्र सूरी
केवल सूरी
1933 - 1999
नज़र सिहूरी
सीमा सूरी
हथेलियों पर सजाए सिंधूरी गुल-अदा सेफ़ज़ा-ए-ख़ुश-रंग में लहक कर
सिधारत भी था शर्मिंदा कि दो-आबे का बासी थातुम्हें मालूम है उर्दू जो है पाली से निकली है
फ़ुग़ाँ ऐ दुश्मन-ए-दार-ए-दिल-ओ-जाँमिरी हालत सुधारी जा रही है
जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता हैरोज़ बाज़ार-ए-जाँ-सिपारी है
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या हैख़िराज की जो गदा हो वो क़ैसरी क्या है
सिंधूरीسیندھوری
of vermilion color
Kabul Mein Saat Saal
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Zaati Diary
डायरी
Khum Khana-e-Javed
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Khutbaat-e-Maulana Ubaidullah Sindhi
व्याख्यान
उर्दू सिंधी के लिसानी रवाबित
शरफ़ुद्दीन इस्लाही
अन्य
मिरआत-ए-सिकंदरी
Ilhamurrahman Fi Tafseer-il-Quran
इस्लामियात
शेर शाह सूरी
विद्दिया भास्कर
Shumara Number-043
दबदबा-ए-सिकंदरी
Qurani Shaur-e-Inqalab
Qurani Dastoor-e-Inqilab
बिशन सिंह ने उस ख़ुदा से कई मर्तबा मिन्नत-समाजत से कहा कि वो हुक्म देदे ताकि झंझट ख़त्म हो, मगर वो बहुत मसरूफ़ था इसलिए कि उसे और बेशुमार हुक्म देने थे। एक दिन तंग आ कर वो उस पर बरस पड़ा, “ओपड़ दी गुड़ गुड़ दी अनैक्स दी बे ध्याना दी मंग दी दाल ऑफ़ वाहे गुरू जी दा ख़ालिसा ऐंड वाहे गूरूजी की फ़तह... जो बोले सो निहाल, सत सिरी अकाल।”उसका शायद ये मतलब था कि तुम मुसलमान के ख़ुदा हो... सिखों के ख़ुदा होते तो ज़रूर मेरी सुनते।
मैं लट गई हुसैन सिधारे जहान सेबस ऐ 'अनीस' बज़्म में है नाला-ओ-फ़ुग़ाँ
पुँछ गया सिंदूर तार तार हुई चुनरीऔर हम अंजान से
अच्छा साथी! जाओ सिधारोअब की इतने दिन न लगाना
उस रात वो रोते रहे, कराहते रहे, अंगारों पर लोटते रहे। उस रात उन्हें बड़ी मुमानी बहुत याद आईं, उनके बाल क़ब्ल-अज़-वक़्त पक गए थे, उनकी जवानी, उनका दुल्हनापा आँसुओं में बह गया। नेकी और पारसाई का मुजस्समा, वफ़ा की पुतली... उनके हिस्से का बुढ़ापा भी उन्होंने अपने वजूद में समेट लिया, और शरीफ़ बीवियों की तरह जन्नत को सिधारीं।आज वो होतीं तो ये दर्द, ये सोज़िश, ये सफ़ेद जड़ों वाले मेहंदी लगे बाल, ये रिस्ते नासूर, ये तन्हाई बट जाती। फिर बुढ़ापा यूँ न दहलाता। दोनों साथ बूढ़े होते, एक दूसरे के दुःख को समझते, सहारा देते।
ना-सुबूरी है ज़िंदगी दिल कीआह वो दिल कि ना-सुबूर नहीं
रास्ते में महमूद ने एक पैसे की ककड़ियाँ लीं। इसमें हामिद को भी ख़िराज मिला हालाँकि वो इंकार करता रहा। मोहसिन और समी ने एक-एक पैसे के फ़ालसे लिए, हामिद को ख़िराज मिला। ये सब रुस्तम-ए-हिंद की बरकत थी।ग्यारह बजे सारे गाँव में चहल-पहल हो गई। मेले वाले आ गए। मोहसिन की छोटी बहन ने दौड़ कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे ख़ुशी जो उछली तो मियाँ भिश्ती नीचे आ रहे और आलम-ए-जावेदानी को सिधारे। इस पर भाई बहन में मार पीट हुई। दोनों ख़ूब रोए। उनकी अम्माँ जान ये कोहराम सुन कर और बिगड़ीं। दोनों को ऊपर से दो-दो चाँटे रसीद किए।
एक दिन एक देहाती बुढ़िया जो पास के किसी गाँव में रहती थी, इस बस्ती की ख़बर सुन कर आ गई। उसके साथ एक ख़ुर्द साल लड़का था। दोनों ने मस्जिद के क़रीब एक दरख़्त के नीचे घटिया सिगरेट, बीड़ी, चने और गुड़ की बनी हुई मिठाईयों का ख़्वाँचा लगा दिया। बुढ़िया को आए अभी दो दिन भी न गुज़रे थे कि एक बूढ़ा किसान कहीं से एक मटका उठा लाया और कुंएँ के पास ईंटों का एक छोटा सा चब...
ठाकुर साहब के दो बेटे थे। बड़े का नाम सिरी कंठ सिंह था। उसने एक मुद्दत-ए-दराज़ की जानकाही के बाद बी.ए. की डिग्री हासिल की थी। और अब एक दफ़्तर में नौकर था। छोटा लड़का लाल बिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था। भरा हुआ चेहरा चौड़ा सीना भैंस का दो सेर ताज़ा दूध का नाश्ता कर जाता था। सिरी कंठ उससे बिल्कुल मुतज़ाद थे। इन ज़ाहिरी ख़ूबियों को उन्होंने दो अंग्रे...
हैं सिधारी कौन से शहरों तरफ़लड़कियाँ वो दिल गली की सारियाँ
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