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पतरस बुख़ारी
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नज़्म
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
मेरे साथ हर हाल में राज़ी थी मगर ज़िंदगी में शामिल न हो पाई
प्यार की राह में जो मेरी हम-सफ़र थी
आमिर रियाज़
नज़्म
भली सी एक शक्ल थी
न ये कि वो चले तो कहकशाँ सी रहगुज़र लगे
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे