वो मेरी पहली मोहब्बत थी
जिस की आवाज़ कानों में सुब्ह सुब्ह चिड़ियों की तरह चहकती थी
जिस की मौजूदगी से फ़ज़ाओं में ख़ुशबू सी महकती थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
जिस की आँखें देख मुतअस्सिर हो जाते थे हिरन
नक़ाब से जिस का चेहरा ऐसे झलकता था जैसे सूरज की पहली किरन
जिस का मुस्कुराना था कि जैसे वादियों में सहर का आना
किसी फूल की तरह जिस पे तितलियाँ मंडराया करती थीं
वो चाँद से आई थी शायद रात में सितारों से बातें किया करती थी
जो दिन का पहला पैग़ाम भी थी और रात का आख़िरी सलाम भी
सुब्ह-बा-ख़ैर से ले कर शब-ब-ख़ैर तक जो मेरा तकिया-कलाम थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
ख़ामोशी में छुपाए जज़्बात जो समझ लेती थी
बिन ज़ाहिर किए तमाम एहसासात जो परख लेती थी
मेरे लिए जो हर कहानी हर एक क़िस्से में थी
हर एक शाइ'री हर एक ग़ज़ल के हिस्से में थी
जो हर नज़्म में थी और हर मौसीक़ी में भी
दिलदार भी थी जो और दुनिया-दार भी
शान-ओ-शौकत की इस दुनिया में मुझ ग़रीब की चाहत की तलबगार थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
जो माज़ी थी मगर मेरा मुस्तक़बिल न बन पाई
मेरे साथ हर हाल में राज़ी थी मगर ज़िंदगी में शामिल न हो पाई
प्यार की राह में जो मेरी हम-सफ़र थी
जिस के जाने के बाद मेरी ज़िंदगी सिफ़र थी
कुछ रिश्ते ख़ून के होते हैं और कुछ दिल के
मगर रूह का रिश्ता सिर्फ़ जिस शख़्स से था
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
मेरे तख़य्युल में जो इक तस्वीर बन के रह गई
जो दिल में मेरे बस के तक़दीर में किसी और की हो गई
जो हमराज़ भी थी और मेरी ज़िंदगी का सब से बड़ा राज़ भी
जिस के जाने के मुद्दतों बाद भी उस के वापस आने की एक आस थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
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