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नज़्म
याद
इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
मौज़ू-ए-सुख़न
और मुश्ताक़ निगाहों की सुनी जाएगी
और उन हाथों से मस होंगे ये तरसे हुए हात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसान
पर्दा-हा-ए-ख़्वाब हो जाते हैं जिस से चाक चाक
मुस्कुरा कर अपनी चादर को हटा देती है ख़ाक
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रामायण का एक सीन
देखा तो एक दर में है बैठी वो ख़स्ता-हाल
सकता सा हो गया है ये है शिद्दत-ए-मलाल
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
हुब्ब-ए-वतन
तुम हर इक हाल में हो यूँ तो अज़ीज़
थे वतन में मगर कुछ और ही चीज़