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ग़ज़ल
नज़र को शौक़ बख़्शा तो सरापा आँख हो जाऊँ
कसाफ़त की कोई चादर हिजाब-ए-दरमियाँ क्यों हो
सय्यद मुईनुद्दीन मख़्फ़ी
ग़ज़ल
अगर अहद-ए-वफ़ा से तू भी फिर जाए मोहब्बत में
'हिजाब' उस शोख़ को मालूम हो जाए दग़ा देना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
'हिजाब' पैहम ये कह रहा है गुनाहगारों ने जोश-ए-रहमत
मुबारक ऐ आसियो मुबारक शफ़ी-ए-रोज़-ए-जज़ा की आमद
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
शाहजहाँ जाफ़री हिजाब अमरोहवी
ग़ज़ल
कभी याद उन की आई है कभी वो ख़ुद भी आते हैं
मोहब्बत में हिजाब-ए-दरमियाँ बाक़ी नहीं रहता
आरिफ़ नक़्शबंदी
ग़ज़ल
मुख़ालिफ़ उस के कुछ कुछ आ रही हैं दिल की आवाज़ें
मगर हम से हिजाब-ए-दरमियाँ कुछ और कहता है
ग़ुबार भट्टी
ग़ज़ल
लताफ़त इश्क़ की है मान-ए-नज़्ज़ारा-ए-सूरत
मोहब्बत ख़ुद हिजाब-ए-दरमियाँ मालूम होती है