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हिंदी ग़ज़ल
मेरे दो नैनन श्रंगार भरे और उस के हैं अंगार भरे
मेरे मन में कोयल कूके है और उस के मन में काग सखी
आशु झा 'नक़्क़ाश'
ग़ज़ल
मिरा दिल भी शराब-ए-इश्क़ से लबरेज़ है साक़ी
ये बोतल भी उड़ा कर काग मयख़ाने में रख देना