aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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बुक व्यू, रावलपिंडी
पर्काशक
वर्ल्ड व्यू पब्लीशर, लाहौर
इब्रानी भाषा में जिब्रईल (गब्रीएल या जिब्राइल क़ुरआन और बाइबिल में उल्लेखित देव-दूतों में से एक का नाम) का अर्थ मर्द-ए-ख़ुदा होता है। इस्लामी मान्यता के अनुसार जिब्रईल ईश्वर के चार पसंदीदा फ़रिश्तों में से एक है। पैग़म्बर / रसूल / ईश्वर-दूत तक ईश्वर का संदेश पहुँचाने का काम इन्हीं के ज़िम्मे था। क़ुरआन और इस्लामी आख्यानो में जिब्रईल को रूह-उल-अमीन, र...
हज़रत मूसा ने मदियन (Midian/Madyan,सउदी-अरब / हिजाज़ के एक शहर का नाम) शहर में लम्बा समय व्यतीत किया और अपने ससुर के मवेशियों की देख-रेख की। एक दिन मूसा अपने बाल-बच्चों के साथ बकरियाँ चराते- चराते मदियन से बहुत दूर निकल गए और चलते-चलते एक पहाड़ की घाटी में जा पहुँचे। उसी पहाड़ को कोह-ए-सीना और कोह-ए-तूर कहा जाता है। रात हो चुकी थी, रास्ता जाना-पहचाना नहीं था, सर्दी भी बहुत थी। इसलिए आग की ज़रूरत महसूस हुई। मूसा ने पहाड़ की ओर निगाह दौड़ाई तो देखा कि पहाड़ के दामन में आग के शोले चमक रहे हैं। अपनी पत्नी से बोले तुम यहीं ठहरो मैं आग ले कर आता हूँ। मूसा जब आग के क़रीब पहुँचे तो देखा कि एक पेड़ है जिस से रौशनी आ रही है। मूसा रौशनी की ओर बढ़े जा रहे थे मगर रौशनी थी कि उन से दूर हुई जा रही थी। अचानक उनको डर महसूस हुआ। उन्हों ने पलटने का इरादा किया। वापस होना ही चाहते थे कि ग़ैब से आवाज़ (आकाशवाणी) आई “ऐ मूसा मैं तेरा परमेश्वर हूँ, बस तू अपनी जूती उतार दे, तू तूर की पवित्र घाटी में खड़ा है” ये रौशनी वास्तव में ईश्वर की ज्योति थी। उसी घाटी में मूसा को ईश्वर से बात-चीत करने का गौरव प्राप्त हुआ।
मुस्कुराहट को हम इंसानी चेहरे की एक आम सी हरकत समझ कर आगे बढ़ जाते हैं लेकिन हमारे इन्तिख़ा कर्दा इन अशआर में देखिए कि चेहरे का ये ज़रा सा बनाव किस क़दर मानी-ख़ेज़ी लिए हुए है। इश्क़-ओ-आशिक़ी के बयानिए में इस की कितनी जहतें हैं और कितने रंग हैं। माशूक़ मुस्कुराता है तो आशिक़ उस से किन किन मानी तक पहुँचता है। शायरी का ये इन्तिख़ाब एक हैरत कदे से कम नहीं इस में दाख़िल होइये और लुत्फ़ लीजिए।
रचनाकार की भावुकता एवं संवेदनशीलता या यूँ कह लीजिए कि उसकी चेतना और अपने आस-पास की दुनिया को देखने एवं एहसास करने की कल्पना-शक्ति से ही साहित्य में हँसी-ख़ुशी जैसे भावों की तरह उदासी का भी चित्रण संभव होता है । उर्दू क्लासिकी शायरी में ये उदासी परंपरागत एवं असफल प्रेम के कारण नज़र आती है । अस्ल में रचनाकार अपनी रचना में दुनिया की बे-ढंगी सूरतों को व्यवस्थित करना चाहता है,लेकिन उसको सफलता नहीं मिलती । असफलता का यही एहसास साहित्य और शायरी में उदासी को जन्म देता है । यहाँ उदासी के अलग-अलग भाव को शायरी के माध्यम से आपके समक्ष पेश किया जा रहा है ।
तन्हाई के विषय पर चयन क्ये हुए ये शेर पढ़िए जो तन्हा होते हुए भी आप के अकेले-पन को भर देंगे और तनहाई को जीने का एक नया अनुभव देंगे.
इस्लाम धर्म के अनुसार संसार का एक समय निर्धारित है। उस के बाद ये दुनिया ख़त्म हो जाएगी। मनुष्यों को उनके कर्मों का बदला दिया जाएगा। वो क़यामत का दिन अर्थात प्रलय का दिन होगा। उसी दिन को रोज़-ए-जज़ा, रोज़-ए-सज़ा, रोज़-ए-हश्र और रोज़-ए-अद्ल कहा गया है।क़ुरआन में प्रलय के बारे में विस्तार से बताया गया है। प्रलय का दिन इन्सानों के लिए कठिनाई से भरा होगा। इस का काल भी लम्बा होगा। ये भी कहा जाता है कि उस दिन सूरज बहुत नज़दीक अर्थात सवा-नेज़े पर आ जाएगा। पापी लोग सूरज की गर्मी से विचलित हो जाएंगे। उस दिन जिस मैदान में मनुष्यों को उनके कर्मों का बदला दिया जाएगा उसे मैदान-ए-हश्र कहा जाता है और उस अवधि को अरसा-ए-महशर के नाम से जाना जाता है।
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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