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ग़ज़ल
साहिर देहल्वी
नज़्म
दोस्त सच मुच बहुत ज़रूरी हैं
इब्न-ए-आदम की बेहतरी के लिए
दोस्त सच मुच बहुत ज़रूरी हैं
शकील जमाली
कुल्लियात
कि बेहतर है 'अयादत और उन्हें बीमार कहते हैं
'अजब होते हैं शा'इर भी मैं उस फ़िरक़े का 'आशिक़ हूँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
रोज़ जूँ-तूँ कि हुआ शाम तो फिर बेहतर अज़ाब
नज़र आई शब-ए-हिज्राँ की सियाही हम को