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शेर
शब-ए-फ़िराक़ का छाया हुआ है रोब ऐसा
बुला बुला के थके हम क़ज़ा नहीं आई
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
रुबाई
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
कर शुक्र जो हासिल है तिरे दिल को फ़राग़
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
शेर
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
इस का काटा कोई अफ़ई भी न पानी माँगे
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
ग़ज़ल
न अपना बाक़ी ये तन रहेगा न तन में ताब ओ तवाँ रहेगी
अगर जुदाई में जाँ रहेगी तुम्हीं बताओ कहाँ रहेगी
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
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ग़ज़ल
बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
बुलबुला आँखों से ख़ूँनाबा-फ़िशानी माँगे
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
ग़ज़ल
कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
समझ में लाल की अब तक हिना नहीं आई
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
ग़ज़ल
मर कर ग़म-ए-हयात से शायद नजात हो
लेकिन वो क्या करे जो ब-क़ैद-ए-हयात हो
राजा अब्दुल ग़फ़ूर जौहर निज़ामी
ग़ज़ल
तमन्ना है ये आँखों की तिरा दीदार आ देखें
कभी रौज़ा तिरा या-अहमद-ए-मुख़्तार आ देखें
अब्दुल हलीम शरर
रुबाई
अख़्लाक़ के उंसुर हूँ अगर अस्ल मिज़ाज
जो क़ौम हो कभी न मुहताज-ए-इलाज
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
रुबाई
तालीम की मीज़ान में हैं तुलते जाते
हैं जौहर-ए-तब्अ रोज़ खुलते जाते
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
रुबाई
जिस इल्म से अच्छों की हो ख़ूबी ज़ाहिर
हो इस से रज़ीलों की बुराई ज़ाहिर
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
ग़ज़ल
हक़ीक़तों से है दुनिया को एहतिराज़ बहुत
कि है मिज़ाज-ए-ज़माना फ़साना-साज़ बहुत