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नज़्म
मुफ़्लिसी
सब ख़ाक बेच आ के मिलाती है मुफ़्लिसी
जब रोटियों के बटने का आ कर पड़े शुमार
नज़ीर अकबराबादी
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ग़ज़ल
ज़रा सी बात पे क्या क्या न खो दिया मैं ने
जो तुम ने खोया है उस का शुमार तुम भी करो