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ग़ज़ल
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायाँ है शय
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आहंग-ए-नौ
ऐ जवानान-ए-वतन रूह जवाँ है तो उठो
आँख उस महशर-ए-नौ की निगराँ है तो उठो
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे
गुल-ए-दाग़-ए-तमन्ना लूट लाए जिस का जी चाहे