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ग़ज़ल
उड़ाते फिर रहे हैं ख़ाक वीराँ रेगज़ारों की
मह-ओ-अंजुम की सदियों हम रिकागी हम ने देखी है
अबदुस्समद जावेद
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ग़ज़ल
कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था
इस लिए फिर आए का'बे से कि मय-ख़ाना न था
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
फूल की रंगत मैं ने देखी दर्द की रंगत देखे कौन
प्यार का गीत सुना है सब ने धुन थी कैसी सोचे कौन