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ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
तू बचा बचा के न रख इसे तिरा आइना है वो आइना
कि शिकस्ता हो तो अज़ीज़-तर है निगाह-ए-आइना-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझ से बचा कर दामन
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझ को
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
जो कोई चाहने वाला तवाफ़ को निकले
नज़र चुरा के चले जिस्म ओ जाँ बचा के चले