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नज़्म
तराना-ए-मिल्ली
'इक़बाल' का तराना बाँग-ए-दरा है गोया
होता है जादा-पैमा फिर कारवाँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
हास्य शायरी
और ये बाँग-ए-दरा 'इक़बाल' की पहचान है
क्या ख़बर तुझ को ये उर्दू शाइ'री की शान है
अहमद अल्वी
ग़ज़ल
कोई ये 'इक़बाल' से जा कर ज़रा पूछे 'ज़िया'
मुद्दतों से क्यूँ तिरी बाँग-ए-दरा ख़ामोश है
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
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शेर
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
अल्लामा इक़बाल
शेर
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शुनीदन दास्ताँ मेरी
ख़मोशी गुफ़्तुगू है बे-ज़बानी है ज़बाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हज़रात-ए-इंसाँ
जहाँ में दानिश ओ बीनिश की है किस दर्जा अर्ज़ानी
कोई शय छुप नहीं सकती कि ये आलम है नूरानी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
मक़ाम-ए-बंदगी दे कर न लूँ शान-ए-ख़ुदावंदी