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हिंदी ग़ज़ल
सरासर भूल करते हैं उन्हें जो प्यार करते हैं
बुराई कर रहे हैं और अस्वीकार करते हैं
जयशंकर प्रसाद
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ग़ज़ल
अभी वो कमसिन उभर रहा है अभी है उस पर शबाब आधा
अभी जिगर में ख़लिश है आधी अभी है मुझ पर इताब आधा
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
ईस्ट इंडिया कंपनी के फ़रज़ंदों से ख़िताब
किस ज़बाँ से कह रहे हो आज तुम सौदागरो
दहर में इंसानियत के नाम को ऊँचा करो
जोश मलीहाबादी
कुल्लियात
मिरा दिल पीर-ओ-मुर्शिद है मुझे है ए'तिक़ाद उस से
फ़रामोश आप को करना मोहब्बत में है याद उस से