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शेर
मैं अपने घर को बुलंदी पे चढ़ के क्या देखूँ
उरूज-ए-फ़न मिरी दहलीज़ पर उतार मुझे
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
क्यूँ हर घड़ी ज़बाँ पे हो जुर्म-ओ-सज़ा का ज़िक्र
क्यूँ हर अमल की फ़िक्र में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा की शर्त
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
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ग़ज़ल
पीना नहीं हराम, है ज़हर-ए-वफ़ा की शर्त
आओ उठा दें आज मय-ए-जाँ-फ़ज़ा की शर्त
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
नया जन्म
अभी इक साल गुज़रा है यही मौसम यही दिन थे
मगर मैं अपने कमरे में बहुत अफ़्सुर्दा बैठा था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
अपनी बस्ती छोड़ कर परदेस में जाएँगे क्या
याँ तो है नान-ए-जवीं भी वाँ मगर खाएँगे क्या
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
क्या क़यामत है कि हम ख़ुद ही कहें ख़ुद ही सुनें
एक से एक अबु-जेहल है किस किस से लड़ें
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
मैं कहाँ हूँ कुछ बता दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!
फिर सदा अपनी सुना दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!