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शेर
है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त 'असद'
हम ने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दुनिया से बे-नियाज़ हूँ ख़ुद से भी बे-ख़बर
क्या क्या करम हैं मुझ पे ग़म-ए-ला-ज़वाल के
क़ादिर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
शीस मोहम्मद इस्माईल आज़मी
ग़ज़ल
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
निकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
ज़िंदगी के नर्म काँधों पर लिए फिरते हैं हम
ग़म का जो बार-ए-गिराँ इनआम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
शेर
तुम से अब क्या कहें वो चीज़ है दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़
कि छुपाए न छुपे और दिखाए न बने
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
तू भी अब छोड़ दे साथ ऐ ग़म-ए-दुनिया मेरा
मेरी बस्ती में नहीं कोई शनासा मेरा