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ग़ज़ल
हर सितम लुत्फ़ है दिल ख़ूगर-ए-आज़ार कहाँ
सच कहा तुम ने मुझे ग़म से सरोकार कहाँ
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
शेर
मैं ने कब दावा-ए-इल्हाम किया है 'ताबाँ'
लिख दिया करता हूँ जो दिल पे गुज़रती जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
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ग़ज़ल
दिल वो काफ़िर कि सदा ऐश का सामाँ माँगे
ज़ख़्म पा जाए तो कम्बख़्त नमक-दाँ माँगे
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला
हम ऐसे खोए कि फिर तेरा आस्ताँ न मिला
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत
दामन-ए-दिल पर उभर आई हैं तस्वीरें बहुत
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत
दिल सलामत है तो दिल के लिए आज़ार बहुत
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
नुमू के फ़ैज़ से रंग-ए-चमन निखर सा गया
मगर बहार में दिल शोरिशों से डर सा गया
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
लुत्फ़ ये है जिसे आशोब-ए-जहाँ कहता हूँ
उसी ज़ालिम को फ़रोग़-ए-दिल-ओ-जाँ कहता हूँ