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शेर
तू जो मूसा हो तो उस का हर तरफ़ दीदार है
सब अयाँ है क्या तजल्ली को यहाँ तकरार है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कुल्लियात
हर हर सुख़न पे अब तो करते हो गुफ़्तुगू तुम
इन बद-मिज़ाजियों को छोड़ोगे भी कभू तुम
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
चलो अब मान भी लो तुम तुम्हें ज़ेहनी मसाइल हैं
ज़रा सी बात पे करते हो तुम अच्छा-भला ग़ुस्सा
शाज़िया नियाज़ी
नज़्म
शाएरी पूरा मर्द और पूरी औरत माँगती है
शर्मिंदा शर्मिंदा हम-बिस्तरी करते हो
तुम को क्या मालूम है
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
वो कि हर बात पे कहते हैं मुझे तू क्या है
ऐसे अंदाज़-ए-तकल्लुम को भला क्या कहिए