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नज़्म
परछाइयाँ
मेरे सपने बुनती होंगी बैठी आग़ोश पराई में
और मैं सीने में ग़म ले कर दिन-रात मशक़्क़त करता हूँ
साहिर लुधियानवी
शेर
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
हमारे बा'द अब महफ़िल में अफ़्साने बयाँ होंगे
बहारें हम को ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे