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ग़ज़ल
मताअ'-ए-जुरअत-ए-दिल वक़्फ़-ए-यक-निगाह-ए-करम
वजूद बे-सर-ओ-सामाँ रहीन-ए-मुल्क-ए-अदम
तल्हा रिज़वी बर्क़
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ग़ज़ल
हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़
बे-विसाल अच्छा हुआ भी कोई बीमार-ए-फ़िराक़
क़लक़ मेरठी
ग़ज़ल
उन के गुनाह-ओ-जुर्म-ओ-ख़ता पर क़द-आवर ख़ामोश रहे
हम से ज़रा सी चूक हुई तो ख़ुर्द-ओ-कलाँ तक बात गई
बिसमिल आज़मी
हास्य शायरी
आप को मरना है तो पहले से नोटिस दीजिए
यानी जुर्म-ए-इंतिक़ाल-ए-ना-गहाँ मत कीजिए