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ग़ज़ल
जनाब-ए-'मोहसिन'-ए-एहसाँ से इल्तिजा है कि वो
पहुँच गए हैं सर-ए-आब तो वुज़ू किए जाएँ
मोहसिन एहसान
ग़ज़ल
जिस के कमाल-ए-तंज़ से शहर सरापा ज़ख़्म है
उस को सभी शिकायतें मोहसिन-ए-क़ंद-ख़ू से हैं
मोहसिन एहसान
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ग़ज़ल
'मोहसिन'-एहसाँ का है अंदाज़-ए-जुनूँ सब से अलग
ये जलाली भी नहीं है ये जमाली भी नहीं
मोहसिन एहसान
ग़ज़ल
यार-ओ-अग़्यार ने देखा है तअ'ज्जुब से बहुत
'मोहसिन'-एहसाँ पे थी वो तीरों की बौछार कि बस
मोहसिन एहसान
ग़ज़ल
'मोहसिन'-एहसान मशक़्क़त की भी हद होती है
तुम तो मर जाओगे बार-ए-ग़म-ए-दिल-दार के साथ



