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ग़ज़ल
बे-मा'नी ला-हासिल रद्दी शे'रों का है जाल उधर
जो चीज़ें बे-कार हैं प्यारे उन चीज़ों को डाल उधर
सबा नक़वी
नज़्म
हिण्डोला
दयार-ए-हिन्द था गहवारा याद है हमदम
बहुत ज़माना हुआ किस के किस के बचपन का
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
कि आख़िर मुस्लिमों में रूह फूंकी बादा-नोशी की