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ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
नज़्म
हमेशा देर कर देता हूँ
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वा'दा निभाना हो
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
और भी सीना कसने लगता और कमर बल खा जाती
जब भी उस के पाँव फिसलने लगते थे ढलवानों पर
जाँ निसार अख़्तर
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ग़ज़ल
सलाम नज्मी
नज़्म
अभी वक़्त है लौट जाओ
सुनो कसरत-ए-ख़ाक में बसने वालो
सुनो तौसन-ए-बर्क़-रफ़्तार पर काठियाँ कसने वालो
रफ़ीक़ संदेलवी
नज़्म
नज़्म
कोई ज़ीन घोड़े पे कसने लगे कोई सामान उठाए
शहर से आने वाले फलों की महक हर तरफ़ फैल जाए