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ग़ज़ल
ख़ार देहलवी
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ग़ज़ल
ये फ़र्ज़ानों की दुनिया एक दीवानों की दुनिया है
जो पुख़्ता-कार-ए-उल्फ़त हैं उन्हें कहते हैं सौदाई
ख़ार देहलवी
ग़ज़ल
न इतरा ऐ दिल-ए-नादाँ किसी के अहद-ओ-पैमाँ पर
कि क़ौल ओ फ़ेल क्या लोगों की तहरीरें बदलती हैं