सुना है कि तुम चाहते हो किसी को कुछ अहवाल अपनी ज़बानी कहो तो
सुना है कि तुम चाहते हो किसी को कुछ अहवाल अपनी ज़बानी कहो तो
ये क्या उखड़ी उखड़ी सी बातें हैं साहिब ये दूभर है क्यों ज़िंदगानी कहो तो
सुनें हम भी है कौन वो माह-पारा कि इस घाट जिस ने तुम्हें है उतारा
ये किस के लिए इस क़दर मुज़्तरिब हो मिटाए हो अपनी जवानी कहो तो
मसीहा-ए-दौराँ हो तुम मैं ने जाना करो चारासाज़ी तो एहसान मानूँ
करोगे कोई दर्द का मेरे दरमाँ दिखाऊँ मैं दाग़-ए-निहानी कहो तो
बताता तो हूँ बात मैं अपने दिल की मगर बात फिर मेरी हेटी न करना
मैं ख़ुद्दार हूँ ज़ब्त है मेरा शेवा सुनाऊँ मैं अपनी कहानी कहो तो
लो आओ इसी बात पर 'अह्द कर लें हमारे हुए तुम तुम्हारे हुए हम
नहीं तुम ज़बाँ से अगर अपनी फिरते तो फिर क्यों है ये आना-कानी कहो तो
कहाँ आशियाना वो अपना चमन में या अब बंद हूँ तीलियों में क़फ़स की
असीरी पे अपनी मुझे है त'अज्जुब मगर मान लूँ दाना पानी कहो तो
बताओ तो ऐ 'ख़ार' क्या तुम पे गुज़री वो आग़ाज़-ए-उल्फ़त की बातें हुईं क्या
नहीं है वो अंदाज़ अब गुफ़्तुगू का हुई क्या वो शो'ला-बयानी कहो तो
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