aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "krishan chander"
कृष्ण चंदर
1914 - 1977
लेखक
किशन चंद
कषण चन्द ज़ेबा
कृषण चंदर चाैधरी कमल
कृष्ण चंद्र राय सक्सेना
अनुवादक
मतबा किशन चंद कम्पनी, लाहाैर
पर्काशक
किशनचन्द माथुर तस्लीम देहलवी
श्री कृषण चंद्र जी महाराज
मैगी एलियट 80 बरस की पुर-वक़ार ख़ातून हैं, बड़े क़ाएदे और क़रीने से सजती हैं। या'नी अपनी उम्र, अपना रुत्बा, अपना माहौल देखकर सजती हैं। लबों पर हल्की सी लिपस्टिक, बालों में धीमी सी ख़ुश्बू, रुख़्सारों पर रूज़ का शाइबा सा, इतना हल्का कि गालों पर रंग मा'लूम न हो,...
सुधा ख़ूबसूरत थी न बदसूरत, बस मामूली सी लड़की थी। साँवली रंगत, साफ़ सुथरे हाथ पांव, मिज़ाज की ठंडी मगर घरेलू, खाने पकाने में होशियार, सीने-पिरोने में ताक़, पढ़ने-लिखने की शौक़ीन, मगर न ख़ूबसूरत थी न अमीर, न चंचल, दिल को लुभाने वाली कोई बात इस में न थी। बस...
अब तो ये ग़ालीचा पुराना हो चुका, लेकिन आज से दो साल पहले जब मैंने इसे हज़रत गंज में एक दुकान से ख़रीदा था, उस वक़्त ये ग़ालीचा बिल्कुल मा’सूम था, इसकी जल्द मा’सूम थी। इसकी मुस्कुराहट मा’सूम थी, इसका हर रंग मा’सूम था। अब नहीं, दो साल पहले, अब...
मैं ग्रांट मेंडीकल कॉलेज कलकत्ता में डाक्टरी का फाईनल कोर्स कर रहा था और अपने बड़े भाई की शादी पर चंद रोज़ के लिए लाहौर आ गया था। यहीं शाही मुहल्ले के क़रीब कूचा ठाकुर दास में हमारा जहां आबाई घर था, मेरी मुलाक़ात पहली बार ताई इसरी से हुई।...
अभी-अभी मेरे बच्चे ने मेरे बाएं हाथ की छंगुलिया को अपने दाँतों तले दाब कर इस ज़ोर का काटा कि मैं चिल्लाए बग़ैर ना रह सका और मैंने गु़स्सो में आकर उसके दो, तीन तमांचे भी जड़ दिए बेचारा उसी वक़्त से एक मासूम पिल्ले की तरह चिल्ला रहा है।...
Krishan Chander: Shakhsiyat Aur Fan
जगदीश चन्द्र विद्धावन
Krishan Chander
नन्द किशोर विक्रम
विनिबंध
Krishan Chander Shakhsiyat Aur Fun
आलोचना
Krishan Chande
जिलानी बानो
कृष्ण चन्द्र और मुख़्तसर अफ़्साना निगारी
डॉ. अहमद हसन
Krishan Chander Ke Afsanvi Adab Mein Haqiqat Nigari
शकीब नियाज़ी
अफ़साना तन्क़ीद
कृष्ण चन्द्र के नॉवेलों का तन्क़ीदी मुतालआ
डॉ. अब्दुस्सलाम सिद्दीक़ी
कृष्ण चन्द्र के नॉवेलों में तरक़्क़ी पसंदी
हयात इफ़्तिख़ार
फ़िक्शन तन्क़ीद
Krishan Chander Ki Afsana Nigari
यशपाल शर्मा
Krishn Chandr Aur Unke Afsane
अतहर प्रवेज़
Krishan Chander Aur Ishtirakiyat
अब्दुल सलाम
शोध
शिकस्त
नॉवेल / उपन्यास
Krishna Chandra ke Anmol Afsane
Darwaze Khol Do
नाटक / ड्रामा
(ख़ास “हमारा अदब” के लिए) आज रात अपनी थी क्योंकि जेब में पैसे नहीं थे। जब जेब में पैसे हों तो रात मुझे अपनी मा’लूम नहीं होती, उस वक़्त रात मरीन ड्राईव पर थिरकने वाली गाड़ियों की मा’लूम होती है। जगमगाते हुए क़ुमक़ुमों की मा’लूम होती है अमीबा सीडर होटल...
जब मैं पेशावर से चली, तो मैंने छकाछक इत्मीनान का साँस लिया। मेरे डिब्बों में ज़्यादा-तर हिंदू लोग बैठे हुए थे। ये लोग पेशावर से होते हुए मरदान से, कोहाट से, चारसद्दा से, ख़ैबर से, लंडी कोतल से, बन्नूँ, नौशेरा से, मानसहरा से आए थे और पाकिस्तान में जान-ओ-माल को...
मैंने इससे पहले हज़ार बार कालू भंगी के बारे में लिखना चाहा है लेकिन मेरा क़लम हर बार ये सोच कर रुक गया है कि कालू भंगी के मुताल्लिक़ लिखा ही क्या जा सकता है। मुख़्तलिफ़ ज़ावियों से मैंने उसकी ज़िंदगी को देखने, परखने, समझने की कोशिश की है, लेकिन...
दो आशिक़ों में तवाज़ुन बरक़रार रखना, जब के दोनों आई सी एस के अफ़राद हों, बड़ा मुश्किल काम है। मगर रम्भा बड़ी ख़ुश-उस्लूबी से काम को सर-अंजाम देती थी। उसके नए आशिक़ों की खेप उस हिल स्टेशन में पैदा हो गई थी। क्योंकि रम्भा बेहद ख़ूबसूरत थी। उसका प्यारा-प्यारा चेहरा...
आज नई हीरोइन की शूटिंग का पहला दिन था। मेक-अप रुम में नई हीरोइन सुर्ख़ मख़मल के गद्दे वाले ख़ूबसूरत स्टूल पर बैठी थी और हेड मेक-अप मैन उसके चेहरे का मेक-अप कर रहा था। एक असिस्टेंट उसके दाएँ बाज़ू का मेक-अप कर रहा था, दूसरा असिस्टेंट उसके बाएँ बाज़ू...
(1) वो आदमी जिसके ज़मीर में कांटा है...
ये मेरा बच्चा है। आज से डेढ़ साल पहले इसका कोई वजूद नहीं था। आज से डेढ़ साल पहले ये अपनी माँ के सपनों में था। मेरी तुंद-ओ-तेज़ जिंसी ख़्वाहिश में सो रहा था। जैसे दरख़्त बीज में सोया रहता है। मगर आज से डेढ़ बरस पहले उस का कहीं...
रात को बड़े ज़ोर का झक्कड़ चला। सेक्रेटेरियट के लाॅन में जामुन का एक दरख़्त गिर पड़ा। सुबह जब माली ने देखा तो उसे मा'लूम पड़ा कि दरख़्त के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है। माली दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया। चपरासी दौड़ा-दौड़ा क्लर्क के पास गया। क्लर्क दौड़ा-दौड़ा सुपरिटेंडेंट...
रात की थकन से उसके शाने अभी तक बोझल थे। आँखें ख़ुमार-आलूदा और लबों पर तरेट के डाक बंगले की बीयर का कसैला ज़ायक़ा। वो बार-बार अपनी ज़बान को होंटों पर फेर कर उसके फीके और बे-लज़्ज़त से ज़ायक़े को दूर करने की कोशिश कर रहा था। गो उस की...
चौरंघी के सुपर में रहने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि वहाँ शिकार मिल जाता है। कलकत्ता के किसी होटल में इतना अच्छा शिकार नहीं मिलता जितना सुपर में। और जितना अच्छा शिकार क्रिसमस के दिनों में मिलता है उतना किसी दूसरे सीज़न में नहीं मिलता। मैं अब तक...
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