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ग़ज़ल
ऐ सखीयन मैं ने देख्या संग कर के यार का
पन न देख्या बे-समझ होर संग-दिल तुझ सार का
क़ाज़ी महमूद बेहरी
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शेर
यक नुक्ता नुक्ता-दाँ कूँ है काफ़ी शनास का
ऐ क़िस्सा-ख़्वाँ न बोल हिकायत क़यास का
क़ाज़ी महमूद बेहरी
नज़्म
एक शाएरा की शादी पर
ऐ कि था उन्स तुझे इश्क़ के अफ़्सानों से
ज़िंदगानी तिरी आबाद थी रूमानों से
अख़्तर शीरानी
कुल्लियात
ऐ सबा गर शहर के लोगों में हो तेरा गुज़ार
कहियो हम सहरा-नवर्दों का तमामी हाल-ए-ज़ार