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कुल्लियात
न जुरअत है न जज़्बा है न यारी बख़्त-ए-बद से है
यही बे-ताक़ती ख़ूँ-गश्ता दिल को मेरे कद से है
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
दिल के मामूरे की मत कर फ़िक्र फ़ुर्सत चाहिए
ऐसे वीराने के अब बसने को मुद्दत चाहिए
मीर तक़ी मीर
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कुल्लियात
कल जोश-ए-ग़म में आँसू टपके न चश्म-ए-तर से
अफ़्सोस है कि आकर यूँ मींह टुक न बरसे
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
ग़लत है इश्क़ में ऐ बुल-हवस अंदेशा राहत का
रिवाज इस मुल्क में है दर्द-ओ-दाग़-ओ-रंज-ओ-कुलफ़त का
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
इश्क़-ए-बला-पुर-शोर-ओ-शर ने जब मैदान में ख़म मारा
पाक हुई कुश्ती आलम की आगे किन ने दम मारा
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
जी की लाग बला है कोई दिल जीने से उठा बैठो
हो के फ़क़ीर गली में किसू की रंज उठाओ जा बैठो