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ग़ज़ल
ज़रा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर बिखर के तमाम शब
तिरा नाम लिक्खा है रेत पर कोई लहर आ के मिटा न दे
बशीर बद्र
नज़्म
परछाइयाँ
तुम्हारा जिस्म हर इक लहर के झकोले से
मिरी खुली हुई बाहोँ में झूल जाता है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हसन कूज़ा-गर (1)
मगर एक ही रात का ज़ौक़ दरिया की वो लहर निकला
हसन कूज़ा-गर जिस में डूबा तो उभरा नहीं है!
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
बे-सम्त हवाओं ने हर लहर से साज़िश की
ख़्वाबों के जज़ीरे का नक़्शा भी नहीं बदला
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
इन्फ्लुएँजा से क्रोना तक
कितना अर्सा लगा ना-उमीदी के पर्बत से पत्थर हटाते हुए
एक बिफरी हुई लहर को राम करते हुए