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ग़ज़ल
बिलइत्तिफ़ाक़ है मंज़िल-गह-ए-मह-ओ-ख़ुर्शीद
तिरा वो नक़्श-ए-कफ़-ए-पा जो रहगुज़ार में है
फ़ैज़ झंझानवी
ग़ज़ल
ख़ुद अपना क़फ़स बन गई कोताही-ए-परवाज़
कुछ दूर नहीं वर्ना जहान-ए-मह-ओ-ख़ुर्शीद
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
या फ़ज़ाओं को मुहीत-ए-मह-ओ-ख़ुर्शीद न कर
या मिरी फ़िक्र को तू जुरअत-ए-पर्वाज़ न दे
मुर्तज़ा बरलास
ग़ज़ल
हज़ार दिल है तिरा मशरिक़-ए-मह-ओ-ख़ुर्शीद
ग़ुबार-ए-मंज़िल-ए-जानाँ नहीं तो कुछ भी नहीं