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नज़्म
हिलाल-ए-ईद
क्यूँ इशारा है उफ़ुक़ पर आज किस की दीद है
अलविदा'अ माह-ए-रमज़ाँ वो हिलाल-ए-ईद है
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
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ग़ज़ल
गुल भी ख़ुश-तलअ'त है पर ऐ माह तू कुछ और है
बास उस में और कुछ है तुझ में बू कुछ और है
मीर शेर अली अफ़्सोस
शेर
पारा-ए-दिल है वतन की सरज़मीं मुश्किल ये है
शहर को वीरान या इस दिल को वीराना कहें