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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
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ग़ज़ल
रौनक़-ए-काशाना-ए-दिल बे-रुख़ी ने छीन ली
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली अफ़्सुर्दगी ने छीन ली
मंज़ूर-उल-हक़ नाज़िर
ग़ज़ल
रौनक़-ए-मय-ख़ाना 'रौनक़' और ये हाल-ए-तबाह
सर पे ख़ाक-ए-मै-कदा हाथों में ख़ाली जाम है